'नाबालिग के स्तनों को छूना या पकड़ना बलात्कार का प्रयास नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने लगा दी इलाहाबाद कोर्ट के फैसले पर रोक, असंवेदनशीलता की निंदा की
- byVarsha
- 26 Mar, 2025

pc: asianetnews
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोडना और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार का प्रयास नहीं माना जाएगा।
हाई कोर्ट ने इसके बजाय फैसला सुनाया था कि ये हरकतें पहली नज़र में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आती हैं, जिसमें कम सज़ा का प्रावधान है। इस फैसले से लोगों में आक्रोश फैल गया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले का स्वतः संज्ञान लिया।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को 'चौंकाने वाला' और 'असंवेदनशील' बताया
जस्टिस बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह ने उच्च न्यायालय के तर्क की कड़ी आलोचना की, निर्णय को "चौंकाने वाला" तथा संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को प्रदर्शित करने वाला बताया। न्यायालय ने विशेष रूप से निर्णय के पैराग्राफ 21, 24 और 26 की ओर इशारा करते हुए कहा कि वे "पूर्ण असंवेदनशीलता तथा अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि निर्णय जल्दबाजी में नहीं सुनाया गया, बल्कि इसे सुरक्षित रखे जाने के लगभग चार महीने बाद सुनाया गया, जिसका अर्थ है कि इसे विचार-विमर्श के पश्चात सुनाया गया। मामले की गंभीरता को देखते हुए, पीठ ने कहा कि उसके पास निर्णय पर रोक लगाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
कानूनी समुदाय तथा सरकार की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने भारत संघ, उत्तर प्रदेश राज्य तथा संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए हैं। न्यायालय के समक्ष उपस्थित भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने निर्णय की निंदा करते हुए इसे "चौंकाने वाला" बताया।
यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा, जब वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने एनजीओ 'वी द वूमेन ऑफ इंडिया' की ओर से यौन उत्पीड़न कानूनों की उच्च न्यायालय की व्याख्या के बारे में चिंता जताते हुए एक पत्र भेजा।
आरोपियों के खिलाफ मामला
अभियोजन पक्ष के अनुसार, दो आरोपी व्यक्तियों, पवन और आकाश ने 11 वर्षीय लड़की के स्तनों को पकड़ा, जिसके बाद आकाश ने उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया। ट्रायल कोर्ट ने शुरू में इसे बलात्कार के प्रयास के रूप में माना और समन आदेश जारी करने से पहले POCSO अधिनियम की धारा 376 (बलात्कार) के साथ धारा 18 (अपराध करने का प्रयास) लगाई।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को जांच के दायरे में ला दिया है, जिससे नाबालिगों के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों को संभालने में पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल मिलता है।