चुनाव आयोग का नया प्रस्ताव: आधार नंबर न देने पर वोटरों को पेश होना होगा

 

चुनाव आयोग (Election Commission) एक नए प्रस्ताव पर काम कर रहा है, जिसके तहत यदि कोई वोटर अपना आधार नंबर नहीं देना चाहता, तो उसे व्यक्तिगत रूप से चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ERO) के सामने पेश होकर इसका कारण बताना होगा। इस प्रस्ताव का उद्देश्य आधार नंबर की अनिवार्यता पर कानूनी स्पष्टता लाना है, जिससे यह साबित हो सके कि यह पूरी तरह स्वैच्छिक है।

आधार नंबर और वोटिंग: क्या है मौजूदा नियम?

आधार कार्ड आमतौर पर सरकारी योजनाओं और वित्तीय लेन-देन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन मतदान प्रक्रिया में इसकी अनिवार्यता नहीं है। यानी, वोट डालने के लिए आधार नंबर देना जरूरी नहीं है। हालांकि, चुनाव आयोग ने 2023 तक 66 करोड़ से अधिक वोटरों के आधार नंबर इकट्ठा किए हैं, लेकिन अभी तक इन्हें वोटर डेटा से लिंक नहीं किया गया है।

क्यों जरूरी होगी ERO के सामने पेशी?

यदि यह नया प्रस्ताव लागू होता है, तो आधार नंबर न देने वाले मतदाताओं को चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ERO) के सामने जाकर अपने निर्णय का कारण बताना होगा। यह कदम चुनाव आयोग को अदालत में यह प्रमाणित करने में मदद करेगा कि आधार नंबर देना पूरी तरह से ऐच्छिक है, न कि अनिवार्य।

ERO कौन होता है?

चुनाव पंजीकरण अधिकारी (ERO) आमतौर पर एक सिविल सर्विस अधिकारी या राजस्व विभाग का अधिकारी होता है, जिसे राज्य सरकार की सलाह से चुनाव आयोग नियुक्त करता है। इसका मुख्य कार्य विधानसभा क्षेत्रों की वोटर लिस्ट को तैयार करना, उसे अपडेट करना और उसमें सुधार करना होता है।

फॉर्म 6B में क्या बदलाव होंगे?

वर्तमान में, वोटरों से आधार नंबर इकट्ठा करने के लिए फॉर्म 6B का उपयोग किया जाता है। पहले इस फॉर्म में सिर्फ दो विकल्प होते थे:

  1. आधार नंबर देना
  2. यह घोषित करना कि "मेरे पास आधार नंबर नहीं है"

इसका मतलब यह था कि अगर कोई वोटर आधार नंबर नहीं देना चाहता, तो उसे यह झूठी घोषणा करनी पड़ती थी कि उसके पास आधार कार्ड नहीं है। अब, चुनाव आयोग इस नियम में बदलाव करने पर विचार कर रहा है, जिससे इस फॉर्म को हटाया जा सकता है और मतदाताओं को अपने निर्णय का स्पष्टीकरण देने के लिए ERO के समक्ष पेश होना पड़ेगा।

सरकार की उच्च स्तरीय बैठक में चर्चा

इस प्रस्ताव पर 18 मार्च 2025 को एक उच्च स्तरीय बैठक हुई, जिसमें गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय, आईटी मंत्रालय और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के अधिकारी शामिल हुए। बैठक में इस बदलाव को लेकर व्यापक चर्चा हुई, जिससे वोटर लिस्ट की पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके।

क्या होगा आगे?

यदि यह प्रस्ताव मंजूर होता है, तो वोटर लिस्ट को और अधिक सटीक बनाने के लिए आधार नंबर का महत्व बढ़ सकता है। हालांकि, सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि मतदाताओं के पास आधार नंबर देने या न देने का पूरा अधिकार हो और इस प्रक्रिया में कोई जबरदस्ती न हो।

चुनाव आयोग का यह प्रस्ताव भारतीय चुनाव प्रणाली में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। यह कदम पारदर्शिता बढ़ाने के लिए उठाया जा रहा है, लेकिन क्या यह वास्तव में वोटरों के लिए सहूलियत भरा होगा या एक अतिरिक्त बाधा बनेगा? इसका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।